भ्रष्टाचार के मामलों में जिला पंचायत रीवा में कोई कार्यवाही न होने से भ्रष्टाचारियों के हौसले काफी बुलंद हैं। पिछले माह मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा सौरभ संजय सोनवड़े का नगर निगम आयुक्त के तौर पर पदस्थापना होने से जिला पंचायत सीईओ का पद खाली हो गया था जिसका प्रभार अभी भी प्रभारी सीईओ सोनवड़े के हांथ में ही है। हालांकि पहले भी जिला पंचायत सीईओ की कार्यप्रणाली संदेहास्पद ही रही है जहां उनके द्वारा कोई विशेष कार्यवाहियां नही की गई थीं जिसको लेकर समय समय पर प्रश्न खड़े होते रहे हैं।
धारा 89 की सुनवाइयों में राजस्व की भांति पेशी दर पेशी
गौरतलब है इसके पहले धारा 89 की चलने वाली सुनवाइयां भी प्रश्न के दायरे में रही हैं। जिस प्रकार राजस्व के प्रकरणों में पेशी दर पेशी कर सुनवाइयां की जाती हैं वही किस्सा बदस्तूर यहां भी जारी रहा है जहां पर पेशियां तो खूब हुईं लेकिन रिजल्ट कुछ नही निकला। कई मामलों में जांच पर जांच कराया जाकर जिनमे वसूली राशि ज्यादा हुआ करती थी उनमें वसूली कम करने अथवा विलोपित करने का भरपूर प्रयास किया गया। हालांकि सीईओ साहब ने उन मामलों पर कभी प्रकाश डालना उचित नही समझा जिनमे कभी जांच ही नही हुई अथवा यदि जांच भी हुई तो जिनमे लीपापोती की गई। कुल मिलाकर यदि देखा जाय तो कुछ अधिकारी राजनीतिक संरक्षण में काम कर रहे हैं और कुछ खास नेताओं की चाटुकारिता करते हुए उन्ही के आगे पीछे चक्कर लगाते हुए जी हुजूरी में लगे हुए हैं।
बिना 40/92 की कार्यवाही पंचायती भ्रष्टाचार पर नियंत्रण कर पाना संभव नहीं
सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने बताया कि मप्र पंचायत राज और ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 की सबसे महत्वपूर्ण धाराएं 89, 40 और 92 होती हैं। यही वह धाराएं हैं जिनकी कार्यवाही के चलते पंचायती राज व्यवस्था पर लगाम लगाया जाकर भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों पर नियंत्रण रखा जा सकता है। धारा 89 में सीईओ के पास सुनवाई करने की शक्ति दी गई है तो धारा 40 में पदाधिकारी को पद से हटाए जाने की शक्ति है तो वहीं धारा 92 में कागजात संपत्ति जब्त करने और वसूली करने की शक्ति दी गई है। लेकिन दुर्भाग्य यह है की जिन मामलों की सुनवाई पहले कलेक्टर के हांथ में हुआ करती थी उसकी शक्ति अब हटाया जाकर सीईओ जिला पंचायतों को दे दिया गया है। हालांकि पहले भी कई कलेक्टर इस सुनवाई को सही ढंग से न करके हिलमहाली ही करते रहते थे लेकिन रीवा में कलेक्टर इलैयाराजा टी के कार्यकाल में कुछ कार्यवाहियां भी देखने को मिली है जिसकी चर्चा आज भी लोग किया करते हैं। जाहिर है सीईओ जिला पंचायत को उस अर्ध न्यायिक कुर्सी पर बैठा दिया गया जिसके संरक्षण और आंख तले पूरा भ्रष्टाचार पनप रहा है। पंचायतों के कामकाज की निगरानी करने और कंट्रोल करने की पूरी शक्ति सीईओ जिला पंचायत के हांथ में ही होती है। अब मप्र में कुछ सीईओ जिला पंचायत न्याय की कुर्सी पर बैठकर उनकी सुनवाई कर रहे हैं जिनके भ्रष्टाचार को वह स्वयं बढ़ा रहे हैं। अब भला यह कैसे संभव हो सकता है। इनके द्वारा सबसे पहले तो वह सभी तरीके खोजे जाते हैं की कैसे सरपंच सचिवों और दोषी इंजीनियर को बचाया जाए। जब बचने के कोई रास्ते नही दिखते तो जांच पर जांच करवाकर पिछले पंचवर्षीय कार्यकाल के काम अब वर्तमान सरपंच सचिवों के ऊपर दवाब लगवाकर करवा रहे हैं। यह किस्सा जिला पंचायतों में अब आम हो चुका है। गबन वाले मामलों में कार्यवाही के स्थान पर जांच में काम कराया जाना बताकर लीपापोती हो रही है।
कुल मिलाकर मप्र में जब तक धारा 40/92 की कार्यवाही की शक्ति सीईओ जिला पंचायत के पास रहेगी पंचायती भ्रष्टाचार में कोई कमी देखने को नही मिलेगी। हां यह संभव है की कोई निहायत ईमानदार सीईओ कभी किसी जिले की कुर्सी पर बैठ जाय तो कुछ कार्यवाही शायद कर सकता है। लेकिन फिलहाल ऐसे चरित्रवान जिला सीईओ की मात्र उम्मीद ही लगाई जा सकती है।
सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने बताया कि मप्र पंचायत राज और ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 की सबसे महत्वपूर्ण धाराएं 89, 40 और 92 होती हैं। यही वह धाराएं हैं जिनकी कार्यवाही के चलते पंचायती राज व्यवस्था पर लगाम लगाया जाकर भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों पर नियंत्रण रखा जा सकता है। धारा 89 में सीईओ के पास सुनवाई करने की शक्ति दी गई है तो धारा 40 में पदाधिकारी को पद से हटाए जाने की शक्ति है तो वहीं धारा 92 में कागजात संपत्ति जब्त करने और वसूली करने की शक्ति दी गई है। लेकिन दुर्भाग्य यह है की जिन मामलों की सुनवाई पहले कलेक्टर के हांथ में हुआ करती थी उसकी शक्ति अब हटाया जाकर सीईओ जिला पंचायतों को दे दिया गया है। हालांकि पहले भी कई कलेक्टर इस सुनवाई को सही ढंग से न करके हिलमहाली ही करते रहते थे लेकिन रीवा में कलेक्टर इलैयाराजा टी के कार्यकाल में कुछ कार्यवाहियां भी देखने को मिली है जिसकी चर्चा आज भी लोग किया करते हैं। जाहिर है सीईओ जिला पंचायत को उस अर्ध न्यायिक कुर्सी पर बैठा दिया गया जिसके संरक्षण और आंख तले पूरा भ्रष्टाचार पनप रहा है। पंचायतों के कामकाज की निगरानी करने और कंट्रोल करने की पूरी शक्ति सीईओ जिला पंचायत के हांथ में ही होती है। अब मप्र में कुछ सीईओ जिला पंचायत न्याय की कुर्सी पर बैठकर उनकी सुनवाई कर रहे हैं जिनके भ्रष्टाचार को वह स्वयं बढ़ा रहे हैं। अब भला यह कैसे संभव हो सकता है। इनके द्वारा सबसे पहले तो वह सभी तरीके खोजे जाते हैं की कैसे सरपंच सचिवों और दोषी इंजीनियर को बचाया जाए। जब बचने के कोई रास्ते नही दिखते तो जांच पर जांच करवाकर पिछले पंचवर्षीय कार्यकाल के काम अब वर्तमान सरपंच सचिवों के ऊपर दवाब लगवाकर करवा रहे हैं। यह किस्सा जिला पंचायतों में अब आम हो चुका है। गबन वाले मामलों में कार्यवाही के स्थान पर जांच में काम कराया जाना बताकर लीपापोती हो रही है।
कुल मिलाकर मप्र में जब तक धारा 40/92 की कार्यवाही की शक्ति सीईओ जिला पंचायत के पास रहेगी पंचायती भ्रष्टाचार में कोई कमी देखने को नही मिलेगी। हां यह संभव है की कोई निहायत ईमानदार सीईओ कभी किसी जिले की कुर्सी पर बैठ जाय तो कुछ कार्यवाही शायद कर सकता है। लेकिन फिलहाल ऐसे चरित्रवान जिला सीईओ की मात्र उम्मीद ही लगाई जा सकती है।